परिचय-

        बच्चे के जन्म के बाद उसे स्तनपान कराना उसके लिए अमृत के समान होता है। बच्चे के शरीर का विकास तथा समय के अनुसार शरीर में परिवर्तन आना यह गुण मां के दूध में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है। गर्भावस्था की अवधि के दौरान मां के शरीर में अधिक चर्बी जम जाती है परन्तु मां के शरीर की चर्बी स्तनपान के साथ-साथ कम होती चली जाती है और मां अपने पहले जैसे सामान्य वजन पर आ जाती है।

महिलाओं द्वारा स्तनपान कराने से बच्चे को होने वाले लाभ-

    शिशु मां के दूध को अन्य दूध की तुलना में आसानी से पचा लेता है।
    बच्चे के सम्पूर्ण विकास के लिए मां के दूध में सभी गुण उपलब्ध होते हैं।
    स्तनपान कराने से बच्चों को किसी भी प्रकार की परेशानी (जैसे कोई रोग या पेट का खराब होना आदि) नहीं होती है। इसकी तुलना में बोतल या डिब्बे का दूध बच्चे को पिलाने से बच्चा रोग से पीड़ित हो सकता है तथा उसे दस्त भी लग सकते हैं।
    मां अपने बच्चे को दूध कभी भी और किसी भी समय पिला सकती है जबकि बोतल का दूध देने से पहले दूध को पकाना, बोतल को साफ करना आदि कार्यों को करना पड़ता है।
    मां जब अपने बच्चे को स्तनपान कराती है तो बच्चे और मां के बीच एक अनूठे संबन्ध का विकास होता है। जब मां बच्चे को स्तनपान कराने के लिए बच्चे को सीने से लगाती है तो मां के दिल की धड़कनों से बच्चा अपने आपको सुरक्षित महसूस करता है।
    स्तनपान कराने से जो हार्मोन्स उत्पन्न होते हैं उनसे मां की बच्चेदानी सिकुड़ जाती है तथा जल्दी ही अपने पहले वाले रूप में भी आ जाती है।
    जब तक मां स्तनपान कराती हैं तब तक वह स्वयं जल्द गर्भधारण नहीं कर सकती है।

स्तनपान कराते समय स्त्रियों द्वारा बरती जाने वाली प्रमुख सावधानियां-

    बच्चे को हमेशा बैठकर ही स्तनपान कराना चाहिए। दूध पीते हुए बच्चे का सिर ऊपर तथा पैर नीचे की ओर होने चाहिए। मां को अपने बच्चे को स्तनपान कराते समय अच्छी तरह पकड़कर रखना चाहिए।
    स्तनपान कराते समय बच्चे को स्तन से इतनी दूरी पर न रखें कि उसे दूध पीने में किसी भी प्रकार की परेशानी हो तथा न ही बच्चे को स्तन के इतना पास रखें कि बच्चे की नाक स्तन से दब जाए और उसे सांस लेने में तकलीफ हो।
    मां के स्तनों के निप्पल मुलायम होने चाहिए जिससे बच्चे को दूध पीने में अधिक ताकत न लगानी पडे़। स्तनों के निप्पलों को मुलायम करने के लिए निप्पलों को गुनगुने पानी से धोना चाहिए या निप्पलों में वैसलीन लगानी चाहिए। बच्चे को दूध पिलाने से पहले मां को स्तनों में लगी हुई वैसलीन अच्छी तरह से पानी से धो लेना चाहिए।
    यदि स्तनों के निप्पल छोटे हो तो उनकी मालिश करनी चाहिए तथा उन्हे अंगुली और अंगूठे से बाहर निकालने की कोशिश करनी चाहिए ताकि बच्चा आसानी से दूध पी सके।
    महिलाओं को मस्तिष्क में कोई विचार लाए बिना बच्चे को पूरा दूध पिलाना चाहिए।
    स्त्रियों को अपने बच्चे को स्तनपान दिन में 3 बार अपने एक ही स्तन से कराना चाहिए क्योंकि पहली बार बच्चा मां का दूध पूरी तरह से नहीं पी पाता है। स्तनपान कराते समय मां के मस्तिष्क में संवेदना पैदा होती है। इस कारण स्तनों में दूध आने और निकलने में समय लगता है।
    स्तनपान करते समय बच्चा दूध के साथ हवा भी अपने पेट में ले जाता है। बच्चे के पेट के अन्दर हवा जाने से पेट की गैस बन जाती है। इसलिए बच्चे के पेट की गैस निकालने के लिए उसे छाती से लगाकर उसकी पीठ थपथपानी चाहिए। इससे पेट की हवा निकल जाएगी। इसके बाद बच्चे को दुबारा दूध पिलाना चाहिए।
    स्तनपान कराने के बाद स्त्रियों को अपने स्तनों के निप्पल तथा बच्चे के मुंह को गीले कपडे़ से साफ करना चाहिए।
    सोते समय बच्चे की करवटे बदलते रहना चाहिए। ताकि बच्चे को दूध जल्दी हजम हो सके। करवटे न बदलने से बच्चा एक ही तरफ लेटा रहता है जिस कारण कभी-कभी बच्चे का सिर चपटा हो जाता है।
    स्तनपान कराने के बाद बच्चे को हिचकियां आना एक साधारण बात है। इसलिए इसको लेकर परेशान नहीं होना चाहिए।
    निप्पल के पीछे काले भूरे रंग का एक घेरा होता है जिसको एरोला कहते हैं। बच्चा स्तनपान करते समय ऐरोला को अपने मसूड़े और तालु के बीच दबाता है और जुबान से दूध पीता है। इस कारण बच्चा आसानी से दूध पी लेता है।
    यदि बच्चा एरोला तक नहीं पहुंच पाता है तो वह केवल निप्पल को ही मुंह से चूसता रहता है जिससे मां को अधिक कष्ट होता है। जब मां को कष्ट हो तो हाथ की अंगुली को बच्चे के मुंह के किनारे से डालकर बच्चे को सही स्थान तक पहुंचाए या अपनी ठोड़ी को स्तन और बच्चे के मुंह के बीच में डालकर बच्चे को दूर करना चाहिए। फिर उसे सही तरीके से स्तनपान कराना चाहिए।
    स्तनपान के समय जब बच्चा ऐरोला को दबाता है तो मां के मस्तिष्क में संवेदना होती है और हार्मोन्स निकलते हैं जिसके कारण स्तनों में अधिक दूध उतरता है।
    स्तनपान करते समय बच्चों को निप्पल से दूध पीने में काफी शक्ति लगानी पड़ती है जबकि बोतल का दूध पीने वाले बच्चे को आसानी से दूध मिल जाता है। इस कारण बोतल का दूध पीने वाले बच्चों का वजन अधिक होता है जबकि मां का दूध पीने से बच्चों का जबड़ा अधिक मजबूत होता है।
    बच्चे के जन्म के बाद स्तनों में दूध आने से पहले एक चिकना, गाढ़ा पीले रंग का पदार्थ निकलता है जिसे कोलोस्ट्रम कहते हैं। पहले दो दिन तक इसकी मात्रा लगभग 40 मिलीलीटर होती है फिर बाद में यह दूध के साथ मिलकर एक सप्ताह तक आता रहता है। यह बच्चे के लिए बहुत ही उपयोगी तत्व होता है। कुछ महिलाएं इसको उपयोगी न समझकर इसे हाथों से दबाकर बाहर निकालती हैं परन्तु यह गलत है।
    स्तनों में निकलने वाले कोलोस्ट्रम में प्रोटीन अधिक मात्रा में होती है।

    मां के दूध की कोलोस्ट्रम और स्तन के दूध की तुलना 100 ग्राम में-

                स्तन का दूध    1.2 ग्राम       3.8 ग्राम          7 ग्राम           87

                कोलेस्ट्रम में     2.7 ग्राम       2.3 ग्राम         3.2 ग्राम         86

                 प्रोटीन             चर्बी              कार्बोहाइड्रेट      पानी

    कोलोस्ट्रम में कार्बोहाइड्रेट, चर्बी, जिंक, कैल्शियम, सोडियम क्लोराइड, विटामिन ए, विटामिन ई, विटामिन बी की भी अधिक मात्रा होती है। धीरे-धीरे 8 दिन में कौलास्ट्रम में कार्बोहाइड्रेट, चर्बी और पोटैशियम की मात्रा कम हो जाती है। इसमें सभी प्रकार के रोगों को रोकने की क्षमता होती है जो बच्चे को रोगों से बचाते हैं।
    स्तनपान करने वाले बच्चे रोग से पीड़ित नहीं होते हैं क्योंकि मां के दूध में रोगों के कीटाणुओं को नष्ट करने की क्षमता होती है।
    स्तनपान करने वाले बच्चे को कब्ज नहीं होता है तथा बच्चे का पेट भी ठीक रहता है।
    प्रारम्भ में मां के दूध में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है परन्तु 6 महीने के बाद दूध में प्रोटीन की मात्रा में कमी हो जाती है। अधिक मात्रा में प्रोटीन बच्चे के पालन-पोषण तथा बच्चे के मस्तिष्क और नसों के विकास में सहायता करती है।
    बच्चे के जन्म के लगभग 4 या 5 दिन के बाद मां के शरीर में रक्त का संचार काफी तेज होता है जिसके कारण मां के स्तनों में अधिक मात्रा में दूध बनता है। स्तनों में अधिक दूध बनने के कारण स्तनों में भारीपन और दर्द होता है। यदि स्तनों में अधिक दूध के कारण तेज दर्द हो तो स्तन पम्प की सहायता से दूध को निकाला भी जा सकता है।
    स्तनों से दूध निकालने के लिए स्तन पम्प का प्रयोग करना सरल होता है। स्तन पम्प कांच के गिलास की तरह होता है तथा इसके एक हिस्से में रबर बल्ब लगा होता है। रबर बल्ब को दबाकर स्तन के ऊपर रख देते हैं। रबर बल्ब को छोड़ने पर यह स्तन को अपनी ओर खींचता है तथा दूध स्तन से निकलकर स्तन पम्प में इकट्ठा हो जाता है। इस विधि में शून्य दबाव कार्य करता है।
    कार्यशील स्त्रियां अपने स्तनों में बढे़ अधिक दूध को स्तन पम्प द्वारा या फिर स्तन को दबाकर गिलास में इकट्ठा कर सकती हैं परन्तु इस बात का विशेष ध्यान रखें कि दूध रखते समय साफ-सफाई और शरीर, हाथ, दूध रखने का बर्तन आदि बिल्कुल साफ होने चाहिए क्योंकि गन्दा दूध पीना बच्चे के लिए हानिकारक हो सकता है। इस निकाले हुए दूध को फ्रिज में भी रखा जा सकता है। फ्रिज में रखने से मां का दूध दो परतों में हो जाता है। चर्बी वाला भाग ऊपर तथा दूध वाला भाग नीचे हो जाता है। इस दूध को बच्चे को पिलाने से पहले हल्का सा गर्म कर लेना चाहिए।
    स्त्रियों को स्तनपान कराते समय निप्पल को हाथों द्वारा खींचकर बच्चे के मुंह में डालना चाहिए। स्तन को हाथ से हल्का सहारा देना चाहिए। इससे स्तन का निप्पल आसानी से बाहर आ जाएगा। इससे आप अपने बच्चे को सरलतापूर्वक बिना किसी कष्ट के दूध पिला सकती हैं।
    स्त्रियों के स्तनों में दूध की अधिक मात्रा या स्तनों के निप्पल की अधिक लम्बाई के कारण बच्चे के गले में खांसी हो सकती है। इसलिए यदि स्तनों में दूध अधिक है तो उसे दबाकर बाहर निकाल देना चाहिए। यदि स्तनों के निप्पल अधिक लम्बे हों तो स्तनपान के समय बच्चों को कुछ दूरी पर रखना चाहिए।
    स्त्रियां जब अपने बच्चे को स्तनपान कराती हैं तो पहले दूध में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है जिसमें चर्बी और कार्बोहाइड्रेट कम होता है परन्तु दूध के बाद के भाग में चर्बी 4 गुना अधिक हो जाती है तथा प्रोटीन केवल एक ही भाग रह जाता है। इससे बच्चे के जन्म के बाद प्रारम्भ में स्तनों का दूध पतला और बाद का दूध बहुत गाढ़ा हो जाता है। जब बच्चे को अधिक भूख लगी होती है या मां सोचती है कि मेरे दूध से मेरे बच्चे का पेट नहीं भरता है तो वह जल्द ही बच्चे को एक तरफ से दूध देकर कुछ ही समय के लिए दूसरी तरफ से भी दूध पिलाना शुरू कर देती है। इसी प्रकार दूसरी ओर से भी हल्का और प्रोटीन युक्त दूध ही मिल पाता है। इस प्रकार बच्चे को बिना चर्बी का दूध पीने को मिलता है और बार-बार मां का दूध मिलने पर भी बच्चे का वजन बढ़ नहीं पाता है। स्त्रियों को अपने बच्चे को एक बार में एक ही स्तन से दूध पिलाना चाहिए ताकि बच्चे को पूरा दूध मिल सके।
    बच्चे को उसकी आयु के अनुसार स्तनपान कराना चाहिए। बच्चे को दिन में कितनी बार और कितने समय दूध देना चाहिए यह उसकी आयु के अनुसार निश्चित होना चाहिए। परन्तु स्त्रियां सोचती है कि पता नहीं मेरा दूध बच्चे के लिए पर्याप्त है या नहीं। इसके लिए स्तनपान कराने से पहले बच्चे को तोल लेना चाहिए। फिर स्तनपान के बाद बच्चों का वजन कर लेना चाहिए। इससे यह मालूम चल जाएगा कि आपका बच्चा एक बार में कितना दूध पीता है।
    स्त्री जब अपने बच्चे को स्तनपान कराती हैं तो उसके शरीर में प्रोलेक्टीन हार्मोन्स बनता है जिसके कारण स्त्री के स्तनों में फिर दूध बनता है। स्त्री यह सोचती हैं कि बच्चे को कम दूध पिलाकर अपने स्तनों में अधिक मात्रा में दूध जमा कर लूंगी जबकि यह धारणा गलत है।
    स्तनों में दूध की मात्रा सन्तुलित भोजन और अधिक मात्रा में दूध के सेवन पर निर्भर करती है।
    अधिक मात्रा में मेथी दाना, काला जीरा, सोंठ और गुड़ का सेवन करने से स्त्री के स्तनों में दूध की मात्रा में वृद्धि होती है।
    स्त्रियों को अपने स्तनों में दूध की वृद्धि के लिए बिना डॉक्टर की सलाह के किसी भी दवा का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि यह दवा दूध के द्वारा बच्चे के शरीर में प्रवेश कर उसे हानि पहुंचा सकती है।
    स्तनपान करने वाले बच्चों के मुंह के जबडे़ अधिक शक्तिशाली होते हैं तथा बच्चों का वजन उम्र के अनुसार सन्तुलित बना रहता है। इसकी तुलना में बोतल का दूध पीने वाले बच्चे का जबड़ा कमजोर होता है क्योंकि बोतल से लगातार दूध बच्चों को बिना मेहनत के मिलता रहता है और दूसरे दूध में चर्बी की मात्रा अधिक होती है। इस कारण बोतल से दूध पीने वाले बच्चे का वजन अधिक होता है।
    प्रसव के तुरन्त बाद बच्चे को मां का दूध पीना नहीं आता है तथा न ही वह स्तनों के निप्पलों को जानता है। इससे बच्चा दूध नहीं पीता है। स्तनों से दूध न पीने के कारण स्त्री तुरन्त बच्चे को बोतल का दूध पिलाती हैं। इस कारण बच्चा मां के कोलोस्ट्रम वाले दूध को पीने से वंचित रह जाता है।
    जब बच्चा स्तनपान करना शुरू करता है तो प्रोलेक्टीन हार्मोन्स के द्वारा दूध स्तनों में उतरता है। स्तनों में दूध के उतरते ही बच्चा और दूध नहीं पीता है तथा सो जाता है परन्तु स्तनों में दूध भरा रहता है। यही भरा हुआ दूध स्तनों के आकार को बदल देता है तथा स्तन नीचे की ओर लटकने लगते हैं। इसलिए बच्चे को पूरा दूध पिलाए बिना सोने नहीं देना चाहिए।
    स्त्रियों को ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे को पहली बार किस स्तन से दूध पिलाया है तथा अगली बार किस स्तन से स्तनपान कराना है।
    बच्चे के जन्म के पहले दिन से बच्चे को दूध एक-एक घंटे के अन्तर से 3 मिनट तक पिलाना चाहिए। 5 दिन के बाद बच्चे को दूध पिलाने का समय 10 मिनट तक कर देना चाहिए। धीरे-धीरे दूध पिलाने का समय बढ़ाकर 30 मिनट तक कर देना चाहिए। 15 मिनट एक स्तन से तथा 15 मिनट तक दूसरे स्तन से बच्चे को दूध पिलाना चाहिए। इसके बाद बच्चे को स्तनपान 2-2 घंटे के अन्तर से कराना चाहिए। एक महीने के बाद बच्चे को दूध ढाई घंटे के बाद पिलाना उचित होता है।
    जब स्तनपान के लिए मां बच्चे को अपने सीने से लगाती हैं तो मां के मस्तिष्क में संवेदना शुरू हो जाती है जिसके कारण स्तनों में दूध उतर आता है।
    स्तनपान कराने का एक सही स्थान होना चाहिए। बच्चे को स्तनपान शान्तचित्त होकर करना चाहिए।
    स्तनपान के समय बच्चा दूध के साथ हवा को भी पेट के अन्दर ले जाता है जिसके कारण बच्चा बेचैन हो जाता है। इसलिए पेट की हवा निकालने के लिए बच्चे की पीठ थपथपानी चाहिए। बच्चे को दाहिनी करवट लिटाने से पेट की हवा जल्द ही बाहर निकल जाती है। यदि बच्चे के पेट की हवा और गैस बाहर नहीं निकलती है तो बच्चा हवा के साथ उल्टी भी कर देता है तथा बच्चे की उल्टी उसकी सांस नलिका में जाने का डर रहता है।
    आम धारणा है कि साधारण प्रसव से जन्में बच्चे का मां के प्रति स्नेह और लगाव ऑपरेशन द्वारा पैदा हुए बच्चे की तुलना में अधिक होता है।
    यदि किसी स्त्री के दो बच्चे हैं तो उन्हें स्तनपान कराने के लिए अलग-अलग स्तनों से दूध पिलाना चाहिए या फिर बारी-बारी से एक-एक बच्चे को दूध पिलाना चाहिए।
    प्रसव के बाद मां अपने बच्चे को स्तनपान कराने के लिए किसी भी तरह बैठ सकती है लेकिन ऑपरेशन के बाद मां को बच्चे का वजन कुछ समय तक नहीं उठाना चाहिए।
    दूध पिलाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप बैठ जाएं बच्चे को गोद में इस तरह लें कि बच्चे का सिर ऊपर और पैर कुछ नीचे हो। बच्चे को हाथों में इस तरह लेना चाहिए कि आपका हाथ बच्चे को पूरी तरह समेटे हुए होना चाहिए।
    मां यदि बच्चे को सही तरीके से स्तनपान नहीं कराती हैं तो बच्चे के मसूड़ों से निप्पल पर घाव और दरारें पड़ सकती है। इस कारण स्तनपान के समय स्तन बच्चे के पास में और सीधे होने चाहिए।
    गर्भावस्था के दौरान स्तन लगातार बढ़ते रहते हैं। बाद में स्तनों का वजन घटकर गर्भावस्था के दौरान बढ़े वजन का आधा भी हो सकता है। प्रसव के बाद स्तनों में दूध की वृद्धि के कारण स्तनों का वजन और भी बढ़ जाता है। स्तनों का वजन तीन महीने तक ऐसे ही रहता है। इसके बाद स्तनों का वजन धीरे-धीरे कम होने लगता है तथा स्तन कमजोर और मुलायम हो जाते हैं। स्तनों में चर्बी समाप्त होने के कारण उनका आकार कभी-कभी बहुत कम हो जाता है।
    यह धारणा गलत है कि ज्यादा बडे़ स्तनों में दूध की मात्रा कम होती है।
    स्त्रियों को अपने स्तनों के भार को सहारा देने के लिए एक बड़ी ब्रा बनवा लेनी चाहिए। ब्रा कपडे़ की होनी चाहिए। पोलिस्टर आदि की ब्रा त्वचा को हानि पहुंचा सकती है। नमी को सोखने की क्षमता में उसमें नहीं होती है तथा रक्त का संचार भी ठीक नहीं होता है क्योंकि पोलिस्टर शरीर की त्वचा से चिपक जाता है। इस कारण ठीक से उसमें हवा भी नहीं जा पाती है।
    यदि स्तनों के रक्त संचार में कोई बाधा या रुकावट हो तो यह भी सम्भव हो सकता है कि स्तन पकने लगे हों। इस कारण स्तनों की अच्छी तरह से देखभाल करनी चाहिए। रात्रि में सोते समय ब्रा को खोलकर सोना चाहिए। स्तनों की गर्म पानी से धुलाई करनी चाहिए और कुछ व्यायाम भी करने चाहिए।
    घर से बाहर निकलते समय ब्रा के अन्दर कपास या सूती कपडे़ का रूमाल रखना चाहिए क्योंकि यदि स्तनों में दूध अधिक मात्रा में होगा तो वह ब्रा को गीला कर सकता है।
    स्तनों के निप्पल यदि अन्दर की ओर धंसे हो तो उन्हे को बाहर निकालने के लिए उनकी मालिश करनी चाहिए तथा अंगूठे और अंगुलियों से पकड़कर उन्हे बाहर की ओर खींचना चाहिए। इसके बाद भी यदि आपके निप्पल छोटे हों और बच्चा इसको सही तरीके से पकड़ नहीं सकता हो तो स्त्री को स्वयं दूध निकालकर इनकी मालिश करनी चाहिए।
    गर्भावस्था में स्तनों की अच्छी देख-भाल के लिए इन्हे ठण्डे पानी से धोना चाहिए या फिर अच्छी तरह से ठण्डे पानी के तौलिए से ढक देना चाहिए। इसके बाद गर्म पानी के तौलिए से ढक देना चाहिए। इस क्रिया से स्तनों का रक्तसंचार बढ़ता है तथा स्तन अच्छे, ठीक, गठीले, चिकने और सुडौल बने रहते हैं।
    स्तनपान कराते समय यदि स्तनों के भारी आकार के कारण स्तनों से बच्चे की नाक बन्द हो रही तो स्त्री बच्चे को स्तनों से दूर न करके स्तन को ऊपर से दबाने लगती हैं ताकि स्तन और बच्चे की नाक में कुछ स्थान बन जाए और बच्चा ठीक प्रकार से सांस ले सके। परन्तु स्तनों पर दबाव डालने के कारण निप्पल का मुंह भी ऊपर की ओर हो जाता है जिसके कारण निप्पल बच्चे के मुंह के तालू से अधिक टकराता है और उसमें घाव भी हो जाते हैं। इस कारण दूध पिलाते समय स्तनों को अधिक नहीं दबाना चाहिए।
    स्तनों पर अधिक साबुन के प्रयोग से भी निप्पल की त्वचा फटने लगती है। इस कारण निप्पलों की अच्छी तरह से सफाई और देखभाल करनी चाहिए तथा स्तनों पर प्रतिदिन चिकनाई लगाते रहना चाहिए।
    यदि बच्चा ठीक तरीके से दूध पीता है तो लगभग 20 मिनट में वह एक स्तन को खाली कर सकता है। यदि स्त्री का ध्यान दूध पिलाने में न हो तो बच्चा दूध चूसते-चूसते थक जाता है और मां के निप्पल पर अधिक चूसने से घाव उत्पन्न हो जाते हैं।
    स्त्रियों को स्तनपान कराते समय बच्चे का स्थान बदलते रहना चाहिए ताकि बच्चा एक ही स्थान पर स्तनों को न चूसे। इसके कारण घाव भी पैदा हो सकता है।
    यदि स्तनों में घाव हो गया हो तो उसे गुनगुने पानी से साफ करना चाहिए। स्तनों पर साबुन का प्रयोग न करें तथा स्तनों को खुली हवा में बाहर सूर्य का प्रकाश देना चाहिए। स्तनों पर कोई चिकनाई युक्त पदार्थ लगाना चाहिए। सोते समय ब्रा को उतार देना चाहिए तथा स्तनपान कराने के बाद स्तनों को धोकर सुखा लेना चाहिए या कोई चिकनाईयुक्त पदार्थ लगा लेना चाहिए।
    स्त्रियां अपने स्तनों के निप्पल को सूखा रखने के लिए ब्रा के सामने सोखने वाला कागज भी लगा सकती है जिसके कारण स्तन गीले होने से बचे रहते हैं।
    स्तनपान कराते समय यदि किसी स्त्री ने अपने बच्चे को लापरवाही से पकड़ रखा है या बच्चे का सिर किसी कारणवश आपके सिर पर लग जाए तो फिर दूध की नलिका का रास्ता सूजन के साथ लाल हो जाता है। इसके दर्द के कारण स्त्री को ठण्ड के साथ बुखार भी आ सकता है। बुखार आने पर डॉक्टर की राय अवश्य लेनी चाहिए। बुखार के समय स्तनों को गरम पानी से सेंकना, हल्की मालिश और हमेशा की तरह बच्चों को दूध पिलाना चाहिए। इस स्थिति में अधिक से अधिक आराम करना चाहिए, ब्रा को ढीला करना चाहिए। यदि हाथ हिलाने से दर्द हो तो अधिक आराम करना चाहिए। स्तनों में इस प्रकार के पकाव को मैस्टाईटिस कहते हैं।
    स्तनों के पकने पर स्तनों का भाग लाल और गरम हो जाता है तथा सूजन के साथ पकने लगता है। जिसके कारण बहुत अधिक दर्द होता है। यही भाग ऊपर से चिकना और चमकदार दिखाई पड़ने लगता है। इस अवस्था में डॉक्टरों की राय अवश्य लेनी चाहिए। प्रमुख रूप से इसका इलाज दवाईयों और स्तनों की सिंकाई द्वारा किया जा सकता है जब इसके लक्षण अधिक होते हैं तो इसका ऑपरेशन करना पड़ सकता हैं। ऐसी अवस्था में चीरा लगाकर स्तनों के पस (पीब) को बाहर निकाला जाता है।
    स्त्रियों को अपने स्तनों की प्रतिदिन जांच करनी चाहिए। नहाते समय, स्तनपान के बाद दोनों स्तनों को किसी लाल निशान अथवा किसी गांठ आदि के लिए जरूर महसूस करना चाहिए। ऐसा होने पर अधिक से अधिक दूध बच्चे को उसी स्तन से देना चाहिए और पीछे से आगे की ओर स्तनों की मालिश करनी चाहिए ताकि दूध की बन्द नलिकाओं का भाग खुल जाए और स्तनों का पकना शीघ्र ही ठीक हो जाए।
    बच्चे के जन्म के बाद यदि किसी कारणवश बच्चे को नर्सरी में रखा जाता है तो भी स्त्री को अपने बच्चे को दूध अवश्य पिलाना चाहिए। यदि बच्चा स्त्री के पास नहीं आ सकता तो स्त्री को अपना दूध (कौलोस्ट्रम) निकालकर सफाई से बच्चों को बूंद-बूंद करके जरूर ही पिलाना चाहिए।

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