मान ली, हार मान गई.
जितना ही तुमको दूर ढकेला
उतनी ही मैं दूर भई.

मेरे चित्‍ताकाश से
तुम्‍हे जो कोई दूर रखे
कैसे भी यह सह्य नहीं
हर बार ही जान गई.

अतीत जीवन की छाया बन
चलता पीछे-पीछे,
अनगिन माया बजाकर वंशी
व्‍यर्थ ही पुकारें मुझे.

सब छूटे, पाकर साथ तुम्‍हारा
अब हाथों में डोर तुम्‍हारे
जो है मेरा इस जीवन में
लेकर आई द्वार तुम्‍हारे.

கருத்துக்கள்
இதுபோன்ற மேலும் கதைகள் மற்றும் புதுப்பிப்புகளுக்கு எங்கள் தந்தி குழுவில் சேரவும்.telegram channel