खामोशी , एक ऐसा दौर जब शोर ए दुनिया थमने सी लगे , जब हर पिघलन जमने लगे । जब ख्वाइशें अपनी हदों से वाकिफ होने लगे , और आंखों को मूंदने लगे । जब घड़ी की टिक टिक में भी कोई ठहरन पेवस्त होने लगे । जब हर आरज़ू पुरजोर आज़माइश करके सन्नाटों की चादर में मुस्कुराकर सोने की क़वायद में हो। जब आपके भीतर की सांस लयबद्ध लगने लगे , धड़कनें बा-साज़ हो जाये ,और हवाओं को सुना जा सके , ऐसी ही खामोशी अक्सर गुनगुना उठती है तन्हाईओं के महफ़िल में । .
ये खामोशियाँ जो आपको बयां करना नही चाहती बल्कि खुद बखुद ज़ाहिर हो रही होती है आप पर ।अगर इन्हें तरीके से महसूस किया जाए तो ये शून्य को अनंत से भरने की प्रक्रिया में होती हैं ।
दिन भर के दुनियावी शोर की प्रसव पीड़ा का जब समापन होता है तो इस कोलाहल की कोख से जन्म लेती है नीरव शांति । खामोशी का ये साम्राज्य स्वयं में समेटे हुए होता है , ईश्वर से साक्षात करती उन तमाम कलाओं को जो खामोशी के बियावान में ही अपने सर्वश्रेष्ठ उर्वर रूप को पाती हैं । नायाब नग़मे, गुनगुनाते साजों में सजा सुरमयी संगीत इस शून्य में ही अप्राणित हो उठता है । आसमान स्याह होकर मानों तमाम दुनियावी शोर को खुद में समेटकर सुला रहा होता हैं , उसके अक्षपटल पर टहलता चाँद निगरानी कर रहा होता है कला के अनगिनत निर्मित होती सक्रिय प्रक्रियाओं को । और चांद की ये निगहबानी ही उसे शायद कलाधर बनाती है । छत्तीस कलाओं से सजा चाँद तो जन्म जन्मान्तरों से प्रेरणा देता आया है कला के उपासकों को । .
खामोशी के इस साम्रज्य में ही किसी शांत कोने में पुष्पित पल्लवित हो रहा होता है अनुराग का पौधा भी , प्रेमरूपी वटवृक्ष की जमीन यही इसी साम्राज्य में निर्मित हो रही होती है । जब एक या एकाधिक हृदय तमाम दुनियावी अरुचिकर प्रचलनों में अगाध रस खोज रहे होते हैं । वो सराबोर हो रहे होते हैं , जिसे हर अप्रेमी व्यसन मानता है ,जिस मद से मदान्ध होने का हृदय हर दुनियावी का नही होता । प्रेम के इस मद में ही प्रेमी अक्सर गहनतम अनुभूतियों को अनुभूत कर रहा होता है ।.
इसी मंथन से निःसृत होती है श्रद्धा , और एक पुष्प खिल उठता है भक्ति का । भक्ति जिसमे अपने स्वामी से योजित होने के पीछे कोई आधार नही होता कोई तर्क अख्तियार नही होते । .
ख़ामोशी आवश्यक है उनके लिए जो जीवन को सार्थकता से जीना चाहते हैं ,समझना चाहते हैं , स्वयं को जानना चाहते है , स्वयं के उद्देश्य को दुनिया के समेकित उद्देश्य से जोड़ना चाहते हैं । वो जो प्रेम को महसूस करना चाहते है । जो जीवन संगीत की प्रत्येक महीन धुन से स्वयं को साजना चाहते हैं । तो खामोश किसी के खामोश कहने से नही स्वयं से हो जाइए , और सुनिए खामोशी में छिपे जीवन के अप्रतिम सधे हुए सुरों को ~
Writer- Ritesh Ojha
Place- Delhi , India
Email Id- aryanojha10@gmail.com