थोडी देर में सबेरा हो गया। वह बूढ़ा और धीरसेन दोनों नीचे उतर कर एक जगह बैठ गए और आराम करने लगे। धीरसेन ने कुछ खाया पिया न था। उसे बड़े जोर की भूख लग रही थी। उसने चारों ओर नजर दौड़ाई। लेकिन कहीं कुछ खाने लायक चीज़ न दिखाई दी। तब उसने बूढ़े से पूछा कि भूख मिटाने का कोई उपाय बताओ। यह सुनते ही बूढा टठा कर हंसने लगा। तब धीरसेन को बहुत गुम्सा आया।

 

'भूख से मेरा दम निकला जा रहा है और तुम्हें हँसी सूझती है ! शायद तुम्हें भूख नहीं लगती होगी! पंख वाले जूतों की ही तरह तुमने भूख मिटाने का भी कोई उपाय ढूंढ लिया होगा!' उसने कहा।

 

'अरे भई! मैं इसलिए नहीं हँसता हूँ। हमने इतनी मेहनत करके जो तीन चीजें कमाई हैं क्या उनका कोई उपयोग नहीं है! तुम्हें बिना समझे बूझे भूख से चिल्लाते देख कर मुझे हँसी आ गई। देखो, यह थैली जब तक हमारे पास रहेगी तब तक हमें दुनियाँ में किसी चीज़ की कमी न होगी! लो!' यह कह कर बूढ़े ने वह थैली नीचे उलटी।

 

तुरंत उसमें से तरह तरह की खाने की चीजें निकल पड़ीं। धीरसेन ने खूब खाया। तब बूढ़े ने देव-कन्या की दी हुई तलवार उसके हाथ में दे दी और पुरानी तलवार फेंकवा दी।

 

फिर उसने मन्त्र-मुकुट देते हुए कहा-

 

'लो, इसे पहन लो! देखो, क्या तमाशा होता है ?' यह कह कर उसने मुकुट उसे पहना दिया। तुरन्त धीरसेन आँखों से ओझल हो गया। बूढ़े को सिर्फ़ हवा में लटका हुआ मुकुट दिखाई देने लगा।

 

'अरे! तुम कहाँ चले गए!' बूढ़े ने पुकारा।‘

 

'यहीं तुम्हारी बगल में तो हूँ। धीरसेन ने जवाब दिया।

 

'क्या मैं तुम्हें दिखाई देता हूँ!' बूढ़े ने धीरसेन से पूछा।

 

'क्यों न दिखाई दोगे? क्या मैं तुम्हें दिखाई नहीं देता?' धीरसेन ने अचरज के साथ पूछा।

 

तब बूढ़े ने कहा 'नहीं! मुझे सिर्फ तुम्हारे सिर का मुकुट दिखाई देता है। जब तुम राक्षस से लड़ने जाओगे तो इसी तरह तुम तो उसे देख सकोगे; लेकिन वह तुम्हें नहीं देख पाएगा। देख ली न इन चीजों की करामात !'

 

इस तरह मन बहलाने की बातें करते हुए दोनों फिर वहाँ से आगे  बढ़ चले।

 

 

 

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