ग़ाफ़िल ब-वहम-ए-नाज़ ख़ुद-आरा है वर्ना याँ
बे-शाना-ए-सबा नहीं तुर्रा गयाह का

बज़्म-ए-क़दह से ऐश तमन्ना न रख कि रंग
सैद-ए-ज़-दाम जस्ता है उस दाम-गाह का

रहमत अगर क़ुबूल करे क्या बईद है
शर्मिंदगी से उज़्र न करना गुनाह का

मक़्तल को किस नशात से जाता हूँ मैं कि है
पुर-गुल ख़याल-ए-ज़ख्म से दामन निगाह का

जाँ दर-हवा-ए-यक-निगाह-ए-गर्म है असद
परवाना है वकील तिरे दाद-ख़्वाह का

उज़्लत-गुज़ीन-ए-बज़्म हैं वामांदागान-ए-दीद
मीना-ए-मय है आबला पा-ए-निगाह का

हर गाम आबले से है दिल दर-तह-ए-क़दम
क्या बीम अहल-ए-दर्द को सख़्ती-ए-राह का

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